अविरत यात्रा के एक महीने

आज अविरत यात्रा को शुरू हुए एक महीने पूरे हो गए हैं। वैसे तो एक महीने का समय बहुत अधिक नहीं होता है लेकिन इस दौरान आपसे जो समर्थन, जो सहयोग मिला है, वह वर्षों में भी हर किसी को नसीब नहीं होता है। इस दौरान अजय पाण्डेय, विनय सर, विजयशील जी, सुधीर तिवारी, अभिनव, अभिषेक त्रिपाठी, दीपक यादव, बिजनेस स्टैंडर्ड से सत्येन्द्र, पवन और कपिल ने अविरत यात्रा को आगे बढ़ाने में अपनी-अपनी तरह से योगदान किया। और ये तो वो नाम हैं जो इस पोस्ट के लेखक को पता हैं। इसके अलावा भी कई लोग इस कारवां का हिस्सा बन चुके हैं। सबको धन्यवाद।

पिछले एक महीने के दौरान हम लगातार सोचते रहे हैं कि आखिर हम अविरत यात्रा को कहां ले जाना चाहते हैं। आखिर , इस पूरे सफर का मकसद क्या है?

इस पोस्ट का लेखक आपकी तरह ही एक साधारण व्यक्ति है, जो सुबह देर से उठता है, गिरते-पड़ते हुए आफिस पहुंचता है। अपना काम ईमानदारी के साथ करता है और जब शाम को घर लौट रहा होता है तो आपकी ही तरह उसे भी एक शिकायत रहती है 'भई, जिंदगी में मजा नहीं आ रहा है।' और रात को अपनी तलाश करते हुए ब्लाग लिखने बैठ जाता है।

ऐसा नहीं है कि ज्यादातर लोगों की तरह हम भी भौतिक सुख-सुविधाऒं में मजा खोजने की कोशिश नहीं करते हैं। बार-बार करते हैं। लेकिन हमारी नियति यही है कि हर कोशिश के बाद मन ग्लानि से भर जाता है। 'क्या यही करने के लिए हमारा जन्म हुआ है?' और फिर करुण मन से एक प्रार्थना निकलती है-

'हे ईश्वर! जब-जब (धर्म की) ग्लानि होती है तो आप अधर्म का नाश करने और धर्म की स्थापना के लिए प्रकट होते हो। भगवान, कब तक हमसे यूँ ही रूठे रहेंगे आप? इस शरीर रूपी कुरुक्षेत्र में धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए अवतार लीजिए, प्रभु।'

एक बात तो साफ है कि अविरत यात्रा की शुरूआत देश-समाज पर किसी तरह का उपकार करने के लिए नहीं हुई है। इसका उद्देश्य तो पूरी तरह से स्वांतः सुखाय है। यह भी हमारी नियति ही है कि दरिद्र नारायण के चरणों में साष्टांग सर्मपण किए बिना न तो हम सुख भोग पाएंगे और न ही हमारी मुक्ति संभव है। अपनी नियति से हम बच नहीं सकते हैं। अब इस प्रारब्ध को कैसे काटा जाए, हमारे साध्य और साधन क्या होने चाहिए, अविरत यात्रा स्वरुप क्या होगा और इसकी मंजिल क्या होगी, इस पर कल बात करेंगे।
सीता राम
अविरत यात्रा

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