
एक शिकारी था। रोज की तरह उसने आज भी जाल बिछाया था और उसमें काफी तोते फंस गए। शिकारी ने जाल समेटा और चल दिया। रास्ते में एक महात्मा जी ने उन तोतों को जाल में फंसे हुए देखा। उन्हें दया आ गइॆ। उन्होंने शिकारी को कुछ पैसे दिए और तोतों को खरीद लिया। तोतों को आजाद कर देने से वे फिर जाल में फंस सकते थे। इसलिए महात्मा जी ने उन तोतों को प्रशिक्षित करने का फैसला किया ताकि वे दोबारा शिकारी के जाल में न फंस सकें।
उन्होंने तोतों को एक मंत्र याद कराया। मंत्र था- एक दिन शिकारी आएगा, अपना जाल बिछाएगा, उसमें दाना डालेगा, हम नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे। तोतों ने बडे मनोयोग से इस मंत्र को याद कर लिया। अब तो आश्रम में रातदिन तोतों का महामंत्र गूंजने लगा। 'एक दिन शिकारी आएगा, अपना जाल बिछाएगा, उसमें दाना डालेगा, हम नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे'।
महात्मा जी ने सोचा कि तोतों को अब सत्य का ज्ञान हो गया है और इसलिए इन्हें आजाद कर देना चाहिए। लेकिन वह पूरी तरह से संतुष्ट हो जाना चाहते थे। उन्होंने तोतों को आजाद कर शिकारी से उन्हें फिर से पकडने के लिए कहा। शिकारी जब जंगल में जाल लेकर गया तो उसने देखा कि सारे तोते समवेत स्वर में पाठ किए जा रहे हैं- 'एक दिन शिकारी आएगा, अपना जाल बिछाएगा, उसमें दाना डालेगा, हम नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे'।
शिकारी ने सोचा कि यहां जाल बिछाने का कोई फायदा नहीं है। तोतों को न सिर्फ शिकारी के इरादों के बारे में पता है बल्कि वे सजग भी हैं। वह लौट आया और महात्मा जी को भला बुरा कहा। महात्मा जी नाराज नहीं हुए। उन्होंने शिकारी को यह आश्वासन देकर वापस जंगल में भेजा कि अगर एक भी तोता नहीं फंसा तो भी वे उसे सारे तोतों के पैसे देंगे। शिकारी दोबारा जंगल गया। जाल बिछाया। दाने दालें और एक किनारे बैठ गया।
दूसरी ऒर तोतों का जप भी जारी था। 'एक दिन शिकारी आएगा, अपना जाल बिछाएगा, उसमें दाना डालेगा, हम नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे'। कुछ देर तो ऎसे ही चला। फिर एक तोता मंत्र जपते हुए धीमे से आकर जाल पर बैठ गया। दानें बडे स्वादिष्ट लग रहे थे। फिर क्या था। थोडी देर में सारे तोते आकर जाल पर बैठ गए।
शिकारी के आश्चर्य का ठिकान न रहा। तोते मजे से दाना खाते हुए गाए जा रहे थे- 'एक दिन शिकारी आएगा, अपना जाल बिछाएगा, उसमें दाना डालेगा, हम नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे, नहीं फंसेंगे'। शिकारी आगे बढा और जाल समेट कर पीठ पर लाद कर चल पडा। तोतों का मंत्र जाप अभी भी जारी था।
हां, तो अब अपनी बात पर लौट कर आते हैं। मित्र का सवाल था कि - हम ऐसे काम क्यों करतें हैं जिनसे हमारा ही नुकसान होता है। मुझे ऊपर वाली कहानी याद आ गई। सोचा कह दूं कि या तो लोगों को सत्य का ज्ञान नही होता है या फिर वे तोतों की तरह इन बातों को सिर्फ रट लेते हैं।
तभी मन में सवाल उठा कि मैं तो कोई रट्टू तोता नहीं हूं। तो फिर ये जानते हुए भी कि फलां काम करने से मेरा अहित होगा मैं वो काम क्यों करता हूं? खुद पर नियंत्रण क्यों नहीं रख पाता? अनजाने में गलती करना और बात है। लेकिन जानते समझते हुए गलती कैसे हो जाती है?
क्या आप भी मेरी तरह खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं। आखिर ये कौन है जो हमारे न चाहते हुए भी हमारी मर्जी के खिलाफ हमसे काम करवा लेता है।
क्या हमें दासता की इन जंजीरों को तोडने के लिए आज इसी समय से

जब तक ये बंधन नहीं टूट जाते तब तक जारी रहेगी
अविरत यात्रा...