धर्म भारत की प्रधान आवश्यकता नहीं , २० सितम्बर १८९३
ईसाइयों को सत् आलोचना सुनने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए, और मुझे विश्वास हैं कि यदि मैं आप लोगों की कुछ आलोचना करूँ, तो आप बुरा न मानेंगे । आप ईसाई लोग जो मूर्तिपूजकों की आत्मा का उद्धार करने की निमित्त अपने धर्मप्रचारकों को भेजने के लिए इतने उत्सुक रहते हैं, उनके शरीरों को भूख से मर जाने से बचाने के लिए कुछ क्यों नहीं करते ? भारतवर्ष में जब भयानक अकाल पड़ा था, तो सहस्रों और लाखों हिन्दू क्षुधा से पीडित होकर मर गये; पर आप ईसाइयों ने उनके लिए कुछ नहीं किया । आप लोग सारे हिन्दुस्तान में गिरजे बनाते हैं; पर पूर्व का प्रधान अभाव धर्म नहीं हैं, उसके पास धर्म पर्याप्त हैं -- जलते हुए हिन्दुस्तान के लाखों दुःखार्त भूखे लोग सूखे गले से रोटी के लिए चिल्ला रहे हैं । वे हम से रोटी माँगते हैं, और हम उन्हे देते हैं पत्थर ! क्षुधातुरों को धर्म का उपदेश देना उनका अपमान करना हैं , भूखों को दर्शन सिखाना उनका अपमान करना हैं । भारतवर्ष में यदि कोई पुरोहित द्रव्यप्राप्ति के लिए धर्म का उपदेश करे, तो वह जाति से च्युत कर दिया जाएगा और लोग उस पर थूकेंगे । मैं यहाँ पर अपने दरिद्र भाईयों के निमित्त सहायता माँगने आया था, पर मैं यह पूरी तरह से समझ गया हूँ कि मूर्तिपूजकों के लिए ईसाई-धर्मालम्बियों से, और विशेषकर उन्ही के देश में, सहायता प्राप्त करना कितना कठिन हैं ।
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विचार मंथन
- 'हमें आध्यात्म की क्या ज़रूरत है
- 'हां' कहने का साहस
- अध्यात्म के अनमोल मोती
- अपने गिरेबान में
- अविरत यात्रा के एक महीने
- अहम् ब्रह्मस्मि
- आइये खिचड़ी की तरह एक दूसरे में रच बस जायें
- आऒ मनाए प्यार का दिन हर दिन
- आखिर ये कौन है जो हमारे न चाहते हुए भी हमसे काम करवा लेता है?
- इस्लाम भाई बहा रहे सरस्वती की धारा
- उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधत
- और हमें इसे त्यागपूर्वक भोगना चाहिए
- कर्म प्रधान बिस्व करि राखा
- कृष्ण और गोपिकाएँ
- क्या आप जानते है
- गण का बिखरता तंत्र
- तस्वीरों के झरोखे से मकर संक्राति
- तुम्हें कुछ भी पाप स्पर्श नहीं कर सकेगा
- थोड़े से सुभाष की जरुरत है
- धर्म की झांकी (गाँधी जी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग से)
- धर्म दुष्यंत कुमार
- ध्यान के लघु प्रयोग
- नहीं मृत्यु हमारी नियति नहीं हो सकती है
- नेता भेजो या फिर खुद ही नेतागिरी करो
- पूर्णता का नाम परमात्मा
- फिर याद आये सुभाष बाबू
- ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म ही हो जाता है
- भक्ति का दूसरा नाम ही प्रेम है
- भारतीय बन जाएं हम
- मकर संक्रांति के पद: परमानंद दास जी द्वारा लिखे हुए
- यदि मैं कर्म न करूं तो ये सारे लोक नष्ट-भ्रष्ट हो जाएंगे
- यह संसार भोगने योग्य है
- रघुपति राघव राजा राम
- राधा और कृष्ण का आकर्षक
- रामचरितमानस सुंदरकांड
- लेकिन उन्हें हमसे ज़रा भी लगाव नहीं है
- विश्व धर्मं सभा में स्वामी जी का व्याख्यान
- शरीर है मंदिर का द्वार
- श्री हनुमान चालीसा
- समष्टि के लिए व्यष्टि का बलिदान
- सूर्य देवता हमें जीवन देते है
- हृदय तो परमात्मा को पाने के लिए बना है
- हे अमृत के पुत्रों सुनो