अब जागिए भी, बदलाव का वक्त आ गया है

आज बसंत पंचमी है। बसंत का मतलब है बदलाव। सूर्य उत्तरायण में पहले ही प्रवेश कर चुका है। शुभ काम का वक्त आ गया है। जरा देखिए, गोस्वामी जी क्या कह रहे हैं-

बसंत ऋतु बहब त्रिबिध बयारी। सब कहं सुलभ पदारथ चारी।
स्त्रक चंदन बनितादिक भोग। देखि हरष बिसमय सब लोग॥
बसंत ऋतु में शीतल, मंद और सुगंधित हवा बह रही है। सभी को इस समय चारों पदार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) सुलभ हैं। सभी तरह के भोगों को पाकर लोग सुखद आश्चर्य भर गए हैं।

अपने पिछले पोस्ट में हमने एक बात अधूरी छोड़ दी थी। निष्काम कर्म योग के मार्ग पर पहला कदम कैसे धरा जाए। जवाब आसान है। त्याग के जरिए। किसका त्याग करना है? भोगों का त्याग। लेकिन ये तो ऋतु ही भोगों की है। सभी तरह के भोग उपलब्ध हैं। अब क्या करें? चयन। चार तरह के भोग हैं। चुन लीजिए, जो आपको चाहिए।

मोटे तौर पर देखें तो धर्म और मोक्ष ही बेहतर विकल्प लगते हैं। कोई अगर इस बात को मानने से इनकार करे तो समझ लीजिए, कि वह अपनी कमजोरी को छिपा रहा है। जानता वह भी है कि सच क्या है। लेकिन ये अर्थ और काम भी कोई कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। इतनी आसानी से तो हार मानने वाले हैं नहीं ये। तो क्या करें? अगर हम इनका मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं तो कोई बात नहीं। अब गुरिल्ला लड़ाई होगी।

ईश उपनिषद हमें यह कला सिखा रहा है- तेन त्यक्तेन भुज्जिथा। अगर भोगना ही है तो त्याग पूर्वक उपभोग करो। अब सवाल यह है कि या तो त्याग हो सकता है या उपभोग। ये त्याग पूर्वक उपभोग क्या बात हुई भला। मतलब सीधा है। लालच, स्वार्थ एंड कंपनी को एक किनारे रख दो। अगर हमारे पास एक गाय है तो उस गाय के दूध पर पहला अधिकार बछड़े का है। उसके बाद कुछ बचता है तो उपभोग कर लीजिए। यह त्यागपूर्वक किया गया उपभोग है। बस में और चाहें तो हवाई जहाज में सफर कीजिए, लेकिन अगर कोई वृद्ध आ जाएं तो उनके लिए सीट खाली कर दीजिए। हममें से बहुत लोग ऐसा करते भी हैं। यह जो मेरा ज्ञान है ये मेरा नहीं है, यह इस समाज की थाती है। मेरे परिवार से भी पहले इस पर मेरे समाज का अधिकार है। मेरा सामर्थ पहले मेरे समाज, इस देश के काम आएगा और उसके बाद ही मैं अपनी व्यक्तिगत महत्वाकां‌क्षाऒं को पूरा करने निकलूंगा। ये त्यागपूर्वक उपभोग है। यह देखने से कठिन लगता है, लेकिन बहुत कठिन है नहीं।
तो फिर बसंत पंचमी के दिन बदलाव की दिशा में एक कदम बढ़ाने का संकल्प ले लें क्या? और संकल्प भी क्या लेना, आइये सीधे कदम ही बढा देते है। आप क्या कहते हैं?

विचार मंथन

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