क्यों न हिन्दू से भारतीय बन जाएं हम


मैं इतिहास का छात्र रहा हूं। आधुनिक शिक्षा के प्रभाव में आकर एक समय में मैं मान बैठा था कि हमारे पुराणों में सिर्फ गप्प भरी है। लेकिन जरा देखिए अग्नि पुणान अपने १८वें अध्याय में क्या कह रहा है-

उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।

वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्तति:॥

यहां एक भू-भाग, एक देश की बात हो रही है। और बात हो रही उस देश में रहने वाले लोगों की। अग्नि पुराण कहता है कि वह देश जो समुद्र के उत्तर में है और हिमालय के दक्षिण में है। उस देश का नाम भारत है और वहां पर उसकी भारती नाम की संतानें रहती हैं।

उन लोगों को इस श्लोक पर जरूर ध्यान देना चाहिए जो यह मानते हैं कि अखिल भारत की अवधारणा आधुनिककाल की देन है। अग्नि पुराण के ऋषि ने अब से हजारों साल पहले ही अखिल भारत की परिकल्पना को साकार कर लिया था। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक भारत का सपना।

लेकिन इस मंत्र में एक खास बात है। भारत और भारती। इस देश का नाम भारत है और वहां भारती नाम की संतानें रहती हैं। अब एक और शब्द पर गौर करते हैं। हिन्दू। हम लोग अरब देशों के साथ प्राचीन काल से व्यापार करते रहे हैं। तो जब अरब यहां आते थे तो उसका सबसे पहले वास्ता सिंधू नदी से पड़ता था। लेकिन अरबों के साथ एक दिक्कत थी। वे 'श' नहीं बोल पाते थे। 'श' की जगह 'ह' बोलते थे। तो साहब ये सिंधू शब्द अरब में हिंदू हो गया। इस तरह सिंधू नदी के इस पार रहने वाले लोग हिंदू कहलाए। विदेशों में यह धारणा आज भी प्रचलित है।

अच्छा एक बात और है। हमारे यहां कभी धर्म को नाम देने की जरूरत महसूस नहीं की गई। हमारे लिए धर्म शब्द ही पर्याप्त था। लेकिन जब ईसाई और मुस्लिम धर्म के साथ हमारा संपर्क हुआ तो उन्होंने हमसे कहा कि भई हम तो ईसाई हैं, मुसलमान हैं, तुम क्या हो? तुम्हारा धर्म क्या है? लेकिन हमने तो अपने धर्म को कोई नाम दिया ही नहीं था। नाम देने की कभी जरूरत ही महसूस नहीं की। लेकिन अब हमें उनसे पृथक दिखना था, इसलिए एक नाम की जरूरत तो थी ही। इस पर अरबों ने हमें बताया कि हम हिंदू हैं और हमने मान भी लिया।

इस तरह हमारी राष्ट्रीयता और हमारा धर्म दोनों ही हिंदू शब्द से पहचाने जाने लगे। अच्छा भारत में सिर्फ हिंदू ही तो रहते नहीं हैं। यहां तो मुसलमान भी हैं, ईसाई भी। इन्हें हिन्दू शब्द से संबोधित किए जाने पर आपत्ति थी। कुछ आपत्ति सिखों ने भी की। कुछ तथाकथित सेक्युलर भारतीयों ने भी हिन्दू शब्द को सांप्रदायिक मानते हुए इससे दूरी बना ली।

यह सब हुआ क्योंकि हम अग्नि पुराण को भूल गए थे। हम तो भारती हैं। भारत माता की संतानें। फिर दूसरों द्वारा दिए गए इस हिंदू शब्द से इतना मोह क्यों? क्या हमें हिंदू शब्द को छोड़कर भारतीय शब्द को नहीं अपना लेना चाहिए। क्योंकि हिंदू शब्द के मुकाबले भारतीय शब्द हमारी राष्ट्रीयता और हमारे शास्वत जीवन मूल्यों के अच्छी तरह से दर्शाता है। हिंदू शब्द तो हमें विदेशियों से मिला है, भारतीय शब्द हमारा अपना है। मुझे पता है कि यह विषय थोड़ा विवादित हो सकता है। इस पर चर्चा आगे भी जारी रखेंगे।

सीताराम

अविरत यात्रा

विचार मंथन

कारोबार में अध्यात्म