पूर्णता का नाम परमात्मा


श्री रवि शंकर
कहते हैं कि परमात्मा सभी जगह विद्यमान हैं। यहां तक कि शरीर की एक-एक कोशिका में भी उनकी उपस्थिति होती है। इसलिए यदि हम अपनी चेतना की सहायता से परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव करते हैं, तो हमें पारलौकिक आनंद का अनुभव होता है।
एक ऐसे परमानंद का अनुभव, जिसमें मैं विलीन हो जाता है। सच तो यह है कि वे कौन हैं, इसका हमें पता नहीं है। लेकिन सही मायने में उनका अस्तित्व है।
एक ऐसा अस्तित्व, जिसके विषय में हमें कुछ भी मालूम नहीं है। कुछ व्यक्तियों का कहना है कि परमात्मा मेरे साथ बातें करते हैं और मुझे उनका संदेश मिला है। दरअसल, यह केवल उपस्थिति का भान मात्र हो सकता है। वास्तव में, अपनी दिव्य चेतना की वजह से हम उनकी उपस्थिति का अनुभव कर पाते हैं। यदि दूसरे शब्दों में कहें, तो परमात्मा पूर्णता का नाम है। अच्छा या बुरा परमात्मा में ही निहित है। परमात्मा से बाहर और कुछ नहीं हो सकता!
यदि हम ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि हमारे सभी विचारों के स्रोत परमात्मा ही हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि परमात्मा विचारक हैं। यह निश्चित है कि परमात्मा से हम पृथक नहीं हो सकते हैं। हम चाहे कितना ही प्रयत्न क्यों न कर लें, इस आकाश से बाहर नहीं हो सकते! बडे से बडा अपराधी भी उसी परमात्मा में समाया है। परमात्मा सर्वव्यापक हैं। वे गरीब या अमीर, दुष्ट या श्रेष्ठ, सभी मनुष्यों आदि में समान रूप से बसे हुए हैं।
संभव है कि यह ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद नहीं हो! लेकिन जो ज्ञानी हैं, वे अच्छी तरह इन बातों के मर्म को जानते हैं कि ईश्वर के समक्ष प्रत्येक व्यक्ति समान है। वहीं दूसरी ओर, मौन में भी परमात्मा का वास होता है। सच तो यह है कि हमें मौन की गहराई में उतरना ही होगा। केवल वाणी को विश्राम देना ही काफी नहीं है। इसलिए मन का मौन और शांत होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए जब आप हवाई जहाज में तीस, चालीस हजार फुट ऊपर उड रहे होते हैं, तब हजारों फुट की ऊंचाई से नीचे देखने पर आपको जमीन पर मौजूद घर चींटी के समान दिखाई देती है। आपका शरीर इतना ऊपर उठ चुका है, लेकिन मन अभी-भी नीचे ही अटका पडा है। क्योंकि मन ने 30हजार फुट की उडान नहीं भरी। आपका मन नीचे धरती में ही फंसा रह गया। ऐसी दशा में परमात्मा की उपस्थिति का भान कैसे हो सकता है? मौन हमारी चेतना का विस्तार है। गहरे मौन में जिस उपस्थिति का आभास होता है, वह असीम है। आप मौन में गहरे उतरकर स्वयं का अवलोकन करें। इससे आपको निश्चित ही परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव होगा।
दरअसल, मौन से ही निर्मल आत्मा की अनुभूति की जा सकती है। इसलिए आप अपने मन के प्रति सजग रहें। क्या आपका मन असमंजस में है? मन प्रसन्न है अथवा अप्रसन्न? गुस्से से भरा है या प्रेम से? यदि आप वाचाल हैं, तो कोई बात नहीं। एक निश्चित समय-सीमा के बाद आप स्वयं मौन रहना सीख जाएंगे, क्योंकि यही स्वाभाविक प्रक्रिया है।

विचार मंथन

कारोबार में अध्यात्म