आइये खिचड़ी की तरह एक दूसरे में रच बस जायें

कभी आपने सोचा है की हम मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी क्यों खाते हैं। सच पूछिये तो मैंने भी नही सोचा था। बस खा लेते थे। फिर पता चला की इस खिचड़ी के पीछे समरसता का कितना बड़ा संदेश छिपा है। ज़रा फिर से सोचिये खिचड़ी के बारे में। कैसे चावल, दाल, आलू, गोभी, मटर और भी जाने क्या क्या, सब मिल कर एक हो जाते है। खिचड़ी बन जाते है। कोई भेद भाव नहीं रह जाता है उनके बीच।
तो अगर आपको ये बात सही लगी हो तो फिर आइये मकर संक्रांति, लोहड़ी , भोगाली बिहू और पोंगल को मिला कर खिचड़ी बना देते हैं।
मकर संक्रांति हमें भाषा , प्रान्त , जाति , धर्म और अमीर गरीब के भेद भाव भुलाने का संदेश देती है

विचार मंथन

कारोबार में अध्यात्म