धर्म / दुष्यंत कुमार

तेज़ी से एक दर्द
मन में जागा
मैंने पी लिया,
छोटी सी एक ख़ुशी
अधरों में आई
मैंने उसको फैला दिया,
मुझको सन्तोष हुआ
और लगा –
हर छोटे को
बड़ा करना धर्म है ।
(संग्रह: सूर्य का स्वागत )

विचार मंथन

कारोबार में अध्यात्म