सूर्य देवता हमें जीवन देते है, लेकिन उन्हें हमसे ज़रा भी लगाव नहीं है

कल अविरत यात्रा पर कोई पोस्ट प्रकाशित नहीं हो सका। ऐसा नहीं था कि लिखा नहीं था। काफी लिख चुका था और बात खत्म होने ही वाली थी कि कंम्यूटर हैंग हो गया। इतनी मेहनत से लिखी गई बातें हाथ से फिसल गईं। मन उदास हो गया। फिर सोचा चलो जो होना था हो गया। लेकिन मन में टीस तो बनी ही हुई थी।
अब सवाल ये है कि असफलता हमें दुख क्यों देती है। परिणाम के प्रति आसक्ति का फल है सिर्फ दुःख, और कुछ नहीं। जब हम किसी से जुड़ाव महसूस करने लगेंगे, अगर एटैचमेंट है तो उसके अलग होने पर कृष्ट भी निश्चित है।
अब आप चाहें तो सीधा सा सवाल कर सकते हैं कि जब परिणाम को लेकर कोई इच्छा ही नहीं होगी, आसक्ति होगी ही नहीं तो भला कोई किसी के लिए क्यों कुछ करेगा। बात तो सही है लेकिन जरा सूरज को देखिए। सूरज हमें जीवन देता है, लेकिन उसे हमसे कोई लगाव नहीं है, आसक्ति नहीं है। कल अगर हम न भी रहें तो सूर्य देव को इससे रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता है। कोई एटैचमेंट नहीं है, हालांकि सूर्य देव हमारा एक पिता की समान पोषण करते हैं।

आप यह भी कह सकते हैं कि अरे साहब सूरज सूरज है उसकी और हमारी क्या बराबरी। लेकिन ऐसा कहना एक मनुष्य के तौर पर अपनी ‌क्षमता को काफी कम करने आंकना होगा। आखिर ये सूरज भी तो उसी प्रकाश से प्रकाशित है जिसकी हम सब संतान हैं। हमें भी अपने परिवार, समाज और खुद अपना पोषण ठीक उसी तरह से करना चाहिए जैसे कि सूर्य देवता इस संसार का कर रहे हैं। किसी भी तरह के प्रतिफल की चाहत के बिना। इस बात की परवाह किए बिना कि परिणाम कैसा और क्या निकल रहा है।

आपको एक सच बात बताऊँ, आज पोस्ट लिखते समय मैं इसे बार बार सेव करता जा रहा हूं। एटैचमेंट बना हुआ है। मैं इसे खोना नहीं चाहता। मैं अभी उस आदर्शवाद पर खरा नहीं उतरता हूं, जिसके बारे में ऊपर बात कर आया हूं। लेकिन अगर हम अपने तथाकथित व्यवहारिता से निकल कर एक कदम भी उस आदर्शवाद की ऒर बढ़ सके तो समझिए जीवन धन्य हो जाएगा, क्योंकि श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि -
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो मयात॥
यानि कि -
निष्काम कर्म में आरंभ का कभी नाश नहीं होता है। इसमें सीमित फल रूपी दोष नहीं है। इसलिए निष्काम कर्म योग का थोड़ा सा भी साधन जन्म-मृत्यु रूपी महान भय से मुक्ति दिला देता है। कृष्ण कह रहे हैं कि इस रास्ते पर कदम भर रख दीजिए और समझिए काम हो गया। उसके बाद आप भले ही इस साधन को छोड़ दें लेकिन ये साधन आपको नहीं छोड़ेगा। अब सवाल यह है कि इस रास्ते पर कदम रखें कैसे? इस पर कल चर्चा करेंगे और इसके साथ ही परसों वाली अधूरी बात भी पूरी हो जाएगी।

विचार मंथन

कारोबार में अध्यात्म