समष्टि के लिए व्यष्टि का बलिदान

अभी तक हम अपनी मंजिल को काफी हद तक स्पष्ट कर चुके हैं। हम सभी का लक्ष्य मुक्ति है। इस लक्ष्य तक पहुंचने का रास्ता क्या हो इस पर चर्चा करने से पहले हमने कल इस बात पर चर्चा की कि इस राह पर चलने वाले साधक में न्यूनतम योग्यताएं क्या हों? पहली बात यह निकली कि उस व्यक्ति के लिए अपने और परिवार के मुकाबले समाज के लिए समर्पण की भावना अधिक हो। दरअसल ऐसा करके हम अपने अहंकार, मैं के भाव पर जीत हासिल करते हैं। समष्टि (बड़े) के लिए व्यष्टि (छोटे) का बलिदान कर हम अपनी चेतना का विस्तार करते हैं। और क्रमशः उत्तरोत्तर विकास करते हुए हम क्रमशः प्रकृति और परमात्मा के साथ एकाकार हो जाते हैं। दूसरी बात प्रसिद्धि परायणता की थी। हमें मशहूर होने की चाहत से बचना चाहिए। नींव का कंगूरा इतना बुरा भी नहीं होता है। पर्दे के पीछे से काम करने में अपना ही मजा है। आज अभी तक कही गई बातों में कोई नई बात नहीं जोड़ रहा हूं। उम्मीद है कि आप मुझे क्षमा कर करेंगे। कल अपनी बात को विस्तार दूंगा।

सीताराम

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