आऒ मनाए प्यार का दिन हर दिन

कल वैलेन्टाइन्स डे है। यह दिन (आप चाहें तो त्यौहार भी कह सकते हैं) भारत में तेजी से लोकप्रिय हुआ है। खासकर युवाऒं के बीच। वैलेन्टाइन्स डे का असर इतना अधिक है कि लाख कोशिशों के बावजूद इस विषय पर लिखने से खुद को रोक न सका।
अच्छा, हम वैलेन्टाइन्स डे से क्या समझते हैं? यही कि यह प्रेम की अभिव्यक्ति का दिन है। लेकिन, प्रेम को लेकर हमारा नजरिया कितना संकीर्ण हो गया है? सिर्फ और सिर्फ मांस के लोथड़ों तक सिमट कर रह गया है हमारा प्यार। अरे, अगर मनाना ही है तो उस परमेश्वर के प्रति प्रेम का पर्व मनाइए जो हमें सूर्य की गर्मी के साथ दिन देता है और चंद्रमा के साथ शीतल रात देता है। अपनी मां के प्रति प्रेम का पर्व मनाइए जो हमें जन्म देती है। पिता के प्रति, भाई या बहन के प्रति, मित्र के प्रति और उससे बढ़कर अपने समाज और देश के प्रति प्रेम का पर्व भी मना लीजिए कभी।
प्रेम तो मनुष्य की प्रकृति है। अगर हम मनुष्य हैं तो हम किसी को चाहे बिना, किसी को प्यार किए बिना एक पल भी नहीं रह सकते हैं। दुनिया की कोई भी सेना हमें ऐसा करने से नहीं रोक सकती है। लेकिन प्यार का यूं भौंड़ा प्रदर्शन। ये सही है कि सभी नहीं करते हैं, लेकिन ज्यादातर तो करते हैं।
और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आज के वैलेन्टाइन्स डे की गर्भ से हर साल सैकड़ों बलात्कार का जन्म होता हो। आखिर पब या डिस्को में देर रात तक शराब के नशे में निर्वस्त्र नाचने वाली संस्कृति बलात्कार को नहीं तो और किसे जन्म देगी।
हमारी संस्कृति स्थूल, दैहिक या मांसल प्रेम का उबाऊ संगीत नहीं बुनती है। हम राधा और कृष्ण की उपासना करने वाले लोग हैं और 'राधे-राधे कहो, चले आएंगे बिहारी' के मंत्र में विश्वास रखते हैं। कहते हैं कि
बिन बिरह प्रेम ने ऊपजै, बिन प्रेम न बिरहा आय

इस बिरह के कारण ही कोई मेघों को दूत बनाकर प्रियतम् के पास भेजता है, तो मीरा पपीहे को प्रियतम तक संदेश पहुंचाने के लिए चोंच में सोने के दांत लगवाने का लालच देती हैं। प्रेम के उच्चतम स्तर पर बात करें तो यह राधा ही थी, जिसने वसुदेवनंदन को साक्षात् भगवान बना दिया। प्यार के बारे में त्रिलोचन की लिखी हुई दो लाइनें याद आ रही हैं-
प्रेम व्यक्ति व्यक्ति से
समाज को पकड़ता है
जैसे फूल खिलता है
उसका पराग किसी और जगह पड़ता है
फूल की दुनिया बन जाती है।

अगर आपका प्यार भी कुछ-कुछ ऐसा ही है, तो फिर ठीक है। फिर आपको एडवांस में- हैप्पी वैलेन्टाइन्स डे। नही तो दिल को बहलाने के लिए जितनी चाहें पिंक चड्ढी भेज लीजिए। भ्रष्ट, कलंकित जीवन तो नग्न वासना दर्शन को ही जन्म देगा। इससे ज्यादा की तो उम्मीद भी नहीं है। और इतने से भी श्रीराम सेना वाले नहीं माने तो अगले साल क्या भेजिएगा? शील और लज्जा के चले जाने के बाद पास में कुछ बचता नहीं है, खोखलेपन के सिवाए।
धर्म और संस्कृति के तथाकथित ठेकेदारों बारे में कुछ नही लिख रहा हूँ। वे इस लायक ही नहीं हैं कि उन पर एक अक्षर भी खर्च किया जायें.
आज के लिए इतना ही
सीताराम
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