उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधत

मन की अतल गहराइयों से जो अंतर्ज्ञान प्रकट होता है उसे हमने आध्यात्म का नाम दिया है। इन्हीं गहराइयों से ही वह संचित ज्ञान बाहर निकलता है जो मानव ने सह्स्त्राब्दियों के अनुभव से प्राप्त किया है। इतने लम्बे समय में वह क्या लक्ष्य था जिसे प्राप्त करने के लिए मानव हमेशा प्रयासरत रहा है। चाहे वह सिंधु सभ्यता हो या आधुनिक काल की भोगवादी संस्कृति, एक अज्ञात शक्ति के प्रति जिज्ञासा मानव मन में हमेशा रही है। हर युग के मनुष्य को हमेशा परमात्मा की शक्ति का भान होता रहा है। परमात्मा के प्रति अगाध विश्वास ने समुद्रगुप्त को भारत विजेता बनाया, अकबर को ‘अकबर महान’ बना दिया और नेपोलियन को ‘चाइल्ड ऑफ डेस्टिनी’ बना दिया। आज की भोगवादी संस्कृति के लोगों को जब ओशो ने इसी संस्कृति के बीच से परमात्मा को पाने का रास्ता दिखाया तो लोगों ने उन्हें हाथों हाथ लिया। अतः जब भी आप परेशान हों एक बार परमात्मा का ध्यान अवश्य करें, कुछ ही क्षणों में आप नई स्फूर्ति पाएंगें और प्रभु तत्व से आत्मा आलोकित हो जाएगी। प्रभु के प्रकाश से अपनी आत्मा के अंधकार को मिटाएं...
(दीपक यादव, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली)

विचार मंथन

कारोबार में अध्यात्म