थोड़े से सुभाष की जरुरत है

सुभाष चन्द्र बोस सच्चे अर्थो में राष्ट्रीय नेता थे. उन्होंने कभी भी नहीं कहा की 'बंगाल चलो' या 'जय बंगाल'. उन्होंने 'दिल्ली चलो' और 'जय हिंद' का नारा दिया. ठाकरे एंड कंपनी सुन रही है ना. सुभाष बाबू सरकारी प्रचार तंत्र के जरिये तैयार किये गए नेता नहीं थे. वे जनता के नेता थे. आम आदमी के नेता और २१वी सदी के भारत के नेता. वे याचक नहीं थे. वे उस राष्ट्रीय स्वाभिमान को जगाना चाहते थे, जिसे गाँधी के उत्तराधिकारी आज तक समझ ही नहीं सके हैं. नेता जी गाँधी की तरह साधन और साध्य की बहस में नहीं उलझते है. और इसलिए वे भगत सिंह की रिहाई के लिए कांग्रेस के भीतर संघर्ष करते हैं और उन्हें मुसोलिनी और हिटलर की मदद लेने से भी गुरेज नहीं है. गाँधी तो इस देश की रग रग में बसे हुए हैं अब हमें थोड़े से सुभाष की जरुरत है.
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विचार मंथन

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